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मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017

..... प्रकृति और नियति ...

..... मेरे आत्मीय बंधुओं ! यथोचित अभिवादन ...
..... प्रकृति और नियति ...
..... नियति का प्रकृति के साथ अटूट सम्बन्ध होता है , आप प्रकृति के साथ जैसा व्यवहार करेंगे , वैसा ही व्यवहार वह आपके साथ करेगी ... कुदरत ने जो कुछ भी दिया है , वह बहुत संतुलित करके दिया है , और यदि कोई उसके संतुलन को बिगाड़ेगा तो प्रकृति में " स्वयं संतुलन " का गुण भी है , वह कभी अपने संतुलन को बिगड़ने नहीं देती ...मानव ने अपने बौद्धिक बल से प्रकृति के संतुलन को नष्ट किया , परिणामस्वरुप नयी नयी विपदाएं भी पैदा हुई ...
..... मसलन मकान बनाते समय हम दरवाजों के लिए लकड़ी का उपयोग करते है , कम से कम ५ वृक्षों की लकड़ी तो हम अपने मकान में खपा ही देते हैं , लेकिन बदले में लगाते कितने पेड़ हैं ? फल वातावरण में वायु प्रदूषित होने लगा ...सांस की बीमारियों में इजाफा ...
..... हमने भूजल का दुरूपयोग किया , मंजन करते समय बेसिन का नल खोल दिया कुल्ला किया एक लीटर पानी से , लेकिन बहा दिया १० लीटर ...क्या हम जग में या लोटे में पानी लेकर कुल्ला नहीं कर सकते ...हालात सामने हैं , पीने का पानी भी कम हो रहा है ...
..... हमने प्रकृति का नियम तोड़ दिया , हम देर रात तक जागने लगे , सूर्योदय के बाद तक सोने लगे ...फल मिला , हमें नाना प्रकार के रोगों ने अल्प वय में ही घेर लिया ...
..... हमने भोजन का रूप बदला , हम फैशन में बासी ( कई महीनों का ) पिज्जा , अंकल चिप्स , कुरकुरे , दालमोट , कोल्ड ड्रिंक लेने लगे , घर के पराठे भूल गए , अम्मा के हाथ की नमक रोटी घी से चुपड़ी भूल गए ...शरीर का संतुलन गड़बड़ा गया , सोचिये ज़रा इन पर छ: माह से एक साल की एक्सपायरी डेट होती है ... कितना बासी खाते हैं हम छि...छि
..... हमने धरती को अपनी लाभ के लिए जगह जगह खोद डाला , कहीं पाइप लाइन , टेलीफोन लाइन, सीवर लाइन , तहखाने आदि बनाए , फल देखिये ! धरती कितनी महंगी हो गयी , कम पड गयी...
..... हमने आकाश का अतिक्रमण किया , सेटेलाईट , विमान गमन , अब देखिये जो लोग फ़्लैट में रहते हैं उन्हें खुला आकाश भी नसीब नहीं ...
.... हमने आग का दुरूपयोग किया , इससे कूडा जलाया , कई जगह ट्रक , बस , खलिहान जलाए ...देखिये न ! गैस सिलेंडर 600 का हो गया ....
..... इस तरह हमने सृष्टि के पांच प्रमिख तत्व , क्षिति , जल, पावक , गगन , समीर ...का जितना भी दुरूपयोग किया , इनके प्रति जैसी नियति रखी , अब प्रकृति संतुलन कर रही है ...
..... अब भी समय है चेत जाइए , वरना ...होइहैं वही जो राम रचि राखा ...

पुस्तकों को अपना सच्चा हमदर्द मानिए

......प्रत्येक मनुष्य को पुस्तकें पढने की आदत डालनी चाहिए , अगर आप अपनी पुस्तकें पढ़ नहीं सकते तो कम से कम रोज उनकी निगाह्बीनी करिए , उन्हें छुइए , टटोलिये , उनके साथ प्रेम करिए , उन्हें निहारिये , उनका सामीप्य महसूस करिए , रख दीजिये , फिर उठाइए , कहीं से भी खोलिए और जहां निगाह अटके वहाँ से कोई चैप्टर पढ़िए , उन्हें झाड़ पोंछ कर , शेल्फ पर खुद रखिये , अपने संकलन को अपने हाथ क्रम से लगाइए , ताकि अगर आपको यह भी नहीं पता कि उनमें क्या लिखा है , फिर भी कम से कम यह इल्हाम तो रहेगा ही कि कौन सी पुस्तक कहाँ उपलब्ध है ......पुस्तक के साथ बिताया हर लम्हा आपको कुछ न कुछ देकर जाएगा ...
.....मैंने खुद इतनी उम्र में शायद ही कोई दिन ऐसा गया होगा जब किसी पुस्तक के साथ कुछ समय न बिताया हो....
......यूँ मानिए कि तीन कमरों में सिर्फ मेरी लायब्रेरी है ....मैंने एक एक किताब को कई कई बार पढ़ा है , और वह सिलसिला आज तक बदस्तूर जारी है .
......ध्यान रखिये ! पुस्तकें आपकी सबसे बड़ी मित्र हैं तनहा होने पर भी वह आपकी मित्र होती है ....सब आपका साथ छोड़ सकते हैं लेकिन पुस्तके आपको कभी नहीं छोड़ेंगी .....इसलिए पुस्तकों 

को अपना सच्चा हमदर्द मानिए , और उन्हें अपनाइए..........http://vijayrajrajeshwar.jagranjunction.com/2014/06/26/%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%A8-%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE/